FY BA एक टोकरी भर मिट्टी कहानी pdf

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एक टोकरी भर मिट्टी लेखक परिचय

माधवराव सप्रे

FY BA sam1 हिंदी 


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माधवराव सप्रे हिंदी के आरंभिक कहानीकारों में से एक सुप्रसिद्ध अनुवादक एवं हिंदी के आरंभिक संपादकों प्रमुख स्थान रखनेवाले कहानीकार है। वे हिंदी के प्रथम कहानी लेखक के रूप में जाने जाते हैं। माधवराव सप्रे का जन्म १८७१ ई. में दमोह जिले के पथरिया ग्राम में हुआ था। उन्होंने मिडिल तक की पढ़ाई बिलासपुर में की। मैट्रिक शासकीय विद्यालय रायपुर से उत्तीर्ण किया। १८९९ में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रूप में शासकीय नौकरी मिली लेकिन सप्रे जी ने भी देशभक्ती प्रदर्शित करते हुए अंग्रेजों की शासकीय नौकरी की परवाह नहीं की। सन १९०० में उन्होंने बिलासपुर जिले के एक छोटे से गाव पेंड्र से 'छत्तीसगढ मित्र' नामक मासिक पत्रिका निकाली, सप्रे जी ने लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी को हिंदी केसरी के रूप में छापना आरंभ किया। साथ ही हिंदी साहित्यकोश एवं लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए नागपुर से हिंदी ग्रंथमाला भी प्रकाशित की। उन्होंने कर्मवीर के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई । सप्रे जी का जीवन संघर्ष, उनकी साहित्य साधना, हिंदी पत्रिका के विकास में उनके योगदान, उनकी राष्ट्रवादी चेतना, समाजसेवा और राजनैतिक सक्रियता को याद करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी जी ने ११ सितंबर १९२६ के कर्मवीर में लिखा था, पिछले पच्चीस वर्षों तक सप्रेजी हिंदी के एक आधार स्तंभ, साहित्य, समाज और राजनीति की संस्थाओं के सहायक उत्पादक तथा उनमें राष्ट्रीय तेज भरने वाले, प्रदेश के गाँवों में घूम घूमकर, अपनी कलम को राष्ट्र की जरूरत और विदेशी सत्ता के जकड़े हुए गरीबों का करूण कुंदन बना डालने वाले, धर्म में धँसकर, उसे राष्ट्रीय सेवा के लिए विवश करनेवाले तथा अपने अस्तित्व को सर्वथा मिटाकर, सर्वथा नगण्य बनाकर अपने आसपास के व्यक्तियों और संस्थाओं के महत्त्व और चिरंजीवी बनानेवाले थे।' माधवराव सप्रे की कहानिया, माधवराव सप्रे : प्रतिनिधी संकलन आदि आपकी मौलिक प्रकाशित कृतियाँ हैं। श्रीमद्भगवत गीतारहस्य, महाभारत मीमांसा आदि आपकी अनुदित कृतियाँ हैं। आपने आजीवन साहित्य सेवा की है। २६ अप्रैल १९२६ को सप्रेजी ने इस दुनिया से विदा ली।


पाठ का सार FY BA sam1 हिंदी   एक टोकरी भर मिट्टी लेखक परिचय



पं. माधवराज सप्रे की 'एक टोकरी भर मिट्टी' कहानी को हिंदी की पहली कहानी के रूप में प्रस्थापित किया गया है। एक टोकरी भर मिट्टी एक प्रभावी कहानी हैं। जिसमें वृद्धा की मार्मिक उक्ति जमीदार की वृत्ति ही. परिवर्तित कर देती है। एक गरीब विधवा अपनी पौत्री के साथ एक झोपड़ी में रहती थी। यह उसकी पुशतैनी झोपड़ी थी। उसका पती और बेटे की मृत्यू उसी झोपड़ी में हुई थी। उसके बेटे की बहु भी पाँच वर्ष कन्या को छोड़कर चल बसी थी। अब यहीं एक बालिका उसका एकमात्र आधार थी। जमींदार का महल उस झोपड़ी के पास ही था। उसे अपने महल के अहाते की झोपड़ी के स्थान तक बढ़ाने की इच्छा हुई। बुढ़िया से झोपड़ी छोड़ने के लिए बहुत कहा गया। लेकिन उसने अपनी झोपड़ी नहीं छोडी । किन्तु जमीदार ने अपने धन के बलपर अदालत द्वारा झोपड़ीपर अपना कब्जा कर लिया। विधवा को वहाँ से निकाल दिया गया। उसके बाद वह वहीं कहीं पड़ोस में रहने लगी। लेकिन समस्या यह थी की, विधवा बुढ़िया की पोती अपनी झोपड़ी में वापस जाने की जीद कर रही थी। उसने खानापिना छोड़ दिया था। तब बुढ़िया ने यह सोचा की झोपड़ी की मिट्टी से चुला बनाकर उसपर रोटी पकाकर पोती को खिलाऊंगी तो वह खाएगी। इसलिए बुढ़िया जमींदार से विनती करती है कि, उसे झोपड़ी से एक टोकरीभर मिट्टी लेने की अनुमती दी जाए। जमींदार इस बात के लिए राजी नहीं था। बुढ़िया ने बहुत बिनती की तब उसने उसे मिट्टी लेने की अनुमती दी। बुढ़िया एक टोकरी भर मिट्टी लेती हैं और जमींदार से कहती है कि, टोकरी उड़ने में सहाय्यता करें। जमीदार जब टोकरी उठाने का प्रयास करता है तब वह टोकरी उठाने में असहाय होता है।



बुढ़िया उसे कहती है कि, आप एक टोकरी भर मिट्टी उठाने में असमर्थ हो, इस झोपड़ी में तो न जाने कितनी टोकरीयाँ भरके मिट्टी है। बुढ़िया के ये मर्म वचन सुनकर जमींदार की आँखे खुल जाती है। उन्हें अपने किए हुए पर पछतावा होता है, वह क्षमा माँगते हुए उसे उसकी झोपड़ी लौटा देते हैं।

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